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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

vimarsh/chintan

विमर्श / चिंतन 
ब्राह्मण और कायस्थ कौन हैं?
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सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य  अपनी योग्यता के अनुसार अपने कर्मों का संपादन कर तदनुसार वर्ण पाता है। एक वर्ण के माता-पिता से जन्मा व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कर्म कर तदनुसार वर्ण पा सकता सकता है। चारों वर्ण समान हैं, कोई किसी से ऊँचा या नीचा नहीं है। ब्राम्हण बुद्धिमान, क्षत्रिय वीर, वैश्य दुनदार तथा शूद्र सेवाभावी है। हर व्यक्ति प्रतिदिन चारों वर्ण हेतु निर्धारित कर्म करता है।    
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात्‌ भवेत द्विजः।
वेद पाठात्‌ भवेत्‌ विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।। -- यास्क मुनि  
हर व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।
(ब्रम्ह कौन है? ब्रम्हं सत्यं जगन्मिथ्या ब्रम्ह सत्य है जगत मिथ्या है। ब्रम्ह भौतिक सृष्टि की रचना करनेवाली शक्ति या परमात्मा है अंश आत्मा के रूप में हर प्राणी ही नहीं जड़ में भी है। इसीलिए कण-कण  या कंकर-कंकर में शंकर कहा जाता है।) जब सभी में परमात्मा का  आत्मा के रूप में है तो कोई ऊँचा या नीचा कैसे हो सकता है? 
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विद्या तपश्च योनिश्च एतद् ब्राह्मणकारकम्।
विद्यातपोभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स:॥ -- पतंजलि, (पतंजलि भाष्य ५१-११५)।
''विद्या और तप युक्त योनि में स्थित ही ब्राम्हण है जिसमें विद्या तथा तप नहीं है वह नाममात्रका ब्राह्मण है, पूज्य नहीं। '' 
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विधाता शासिता वक्ता मो ब्राह्मण उच्यते।
तस्मै नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गिरमीरयेत्॥ -महर्षि मनु 
ईश्वर द्वारा शासित अर्थात सांसारिक शक्तियों से अधिक ईश्वरीय शक्तियों  नियंत्रण माननेवाला ब्राम्हण कहा जाता है।उसका अमंगल चाहना  अनुचित है। '' (मनु; ११-३५)।
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"जो जन्म से ब्राह्मण हे किन्तु कर्म से ब्राह्मण नहीं हे उसे शुद्र (मजदूरी) के काम में लगा दो" - वेदव्यास, महाभारत 
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"जो निष्कारण (आसक्ति के बिना) वेदों के अध्ययन में व्यस्त और वैदिक विचार के संरक्षण-संवर्धन हेतु सक्रिय है वही ब्राह्मण हे." - -महर्षि याज्ञवल्क्य, पराशर व वशिष्ठ शतपथ ब्राह्मण, ऋग्वेद मंडल १०., पराशर स्मृति

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"शम, दम, करुणा, प्रेम, शील(चारित्र्यवान), निस्पृही जेसे गुणों का स्वामी ही ब्राह्मण है"-श्री कृष्ण, भगवदगीता             ----------------------------              
"ब्राह्मण वही है जो "पुंसत्व" से युक्त "मुमुक्षु" है। जो सरल, नीतिवान, वेदप्रेमी, तेजस्वी, ज्ञानी है।  जिसका ध्येय वेदों का अध्ययन-अध्यापन-संवर्धन है।"- शंकराचार्य विवेक चूडामणि, सर्व वेदांत सिद्धांत सार संग्रह, आत्मा-अनात्मा विवेक
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केवल जन्म से ब्राह्मण होना संभव नहीं, कर्म से कोई भी ब्राह्मण बन सकता है। 
इसके कई प्रमाण वेदों और ग्रंथो में हैं। 

(क) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे | वे ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना कर ब्राम्हण हुए | ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है|
(ख) ऐलूष ऋषि दासीपुत्र, जुआरी और दुश्चरित्र थे | बाद में बोध होने पर अध्ययनकर ऋग्वेद पर अनुसन्धान व अविष्कार किये | ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(ग) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु सत्य निष्ठा के कारण ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |
(घ) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.१.१४)
( ङ) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(च) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र क्षत्रिय, प्रपौत्र ब्राम्हण हुए | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(छ) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए |
(ज) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने |
(झ) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)
() क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए | इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं |
(ट) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |
(ठ) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपनेकर्मों से राक्षस बना |
(ड) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ |
(ढ) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे |
(ण) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया | विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(त) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |
(थ) कश्मीर के महामंत्री कल्हण राजतरंगिणी ग्रन्थ की रचना कर ब्राम्हण हुए, उनके पिता कायस्थ, लीत्तमः ब्राम्हण तथा प्रपितामह कायस्थ थे।  
'सर्वं खल्विदं ब्रह्मं' अर्थात सकल सृष्टि ब्रम्ह है, जो अजन्मा तथा अविनाशी है। थेर्मोडायनामिक्स के अनुसार ऊर्जा न तो बनाई जा सकती है, न नष्ट होती है उसका रूपांतरण (कायांतरण) ही किया जा सकता है। यह ऊर्जा ही ब्रम्ह है जो न बनाई जा सकती है, न नष्ट की जा सकती है तथा जिससे सकल सृष्टि का निर्माण होता है। इस ऊर्जा का कोई रूप-आकार भी नहीं है।  यह निराकार है जो कोई भी रूप ले सकती है। निराकार होने के कारण इसका कोई चित्र नहीं है अर्थात चित्र गुप्त है।  यह ऊर्जा जब किसी काया में स्थित होती है तो कायस्थ कही जाती है 'कायस्थिते स: कायस्थ:। परम ऊर्जा ही आत्मा रूप में जड़ को चेतन बनाती है। इससे विज्ञान अभी अपरिचित है।   
परम ऊर्जा जब सृष्टि में निर्माण करती है तो ब्रम्हा, संधारण या पालन करती है तो विष्णु और विनाश करती है तो शंकर कही जाती है। जीवन है तो प्रश् हैं, उत्तर हैं। जीवन नहीं तो प्रश्न या शंकाएं नहीं, तभी शंकर शंकारि (शंका के शत्रु) अर्थात विश्वास कहे गए हैं। 
''भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ'' -तुलसीदास, मानस 
विश्वास में विष का वास भी है, इसलिए शंकर नीलकंठ हैं। 
परमऊर्जा या परमात्मा आत्मा रूप में सकल जगत में होने के कारन सबसे पहले पूज्य कहा गया है'
''चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्व देहिनां। " अर्थात चित्र गुप्र (निराकार परमेश्वर) सबसे पहले प्रणाम के योग्य है क्योंकि वह सब देहधारियों में आत्मा रूप में वास करता है।  
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