गहरे सागर वन उपवन धरा औ' गगन
प्रकृति नियमों का सब कर रहे हैं अनुसरण
आदमी को भी जीना है जो संसार में
पर्यावरण से करना ही होगा संतुलन
गहन दोहन उसी का पर कर रहा
भूल अपनी मनुज न सुधारेगा तो
सुख के युग का असंभव फिर आगमन
हो रहा मृदा जल वन पवन का क्षरण
है प्रदूषित हुआ सारा वातावरण
साँस लेना भी मुश्किल सा अब हो चला
जो न संभले तो दिखता निकट है मरण
हमें चाहिये कि हम लालचों से थमें
विश्व हित में प्रकृति साथ व्यवहार में
उसकी गति और मति का करें अनुसरण
मिलें उपहार हैं भूमि जल वन पवन
सूर्य की ऊर्जा , स्वस्थ जीवन गगन
इनका लें लाभ पर बिना आहत किये
वन औ' वनप्राणियों का विवर्धीकरण
इससे गहरा जुडा हरेक उत्थान है
हो गया है जरूरी बहुत आज अब
कल के जीवन के बारे में चिंतन मनन
मिटाने गलतियाँ वन बढ़ायें सगन
प्रदूषण हटें जल स्त्रोत के , वायु के
प्रकृति पूजा की हर मन में उपजे लगन
प्रकृति के ही प्यार से ही है हरी यह धरा
अगर पर्यावरण नष्ट हमने किया
हमको भगवान भी कल न देंगे शरण .
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